।।अथ सत्यनारायण व्रत कथा पंचम अध्याय।।
एक समय राजा तुंगड्ध्वज, प्रजापालन में रत थे।
प्रजापालन राज काज में, तुंगड्ध्वज पारंगत थे।।
एक बार तुंगड्ध्वज राजा, मृगया को वन में गए थे।
मार मार कर पशुओं को, तुंगड्ध्वज थक गए थे।।
विश्राम करने को राजन, बटछांव के नीचे आए थे।
गोपगणों को सतनारायण कथा की, पूजा में रत पाए थे।।
अहंकार वश राजा तुंगड्ध्वज , नहीं गोप गणों के पास गए।
मद में आकर राजा, बटछांव में लेट गए।।
सत्यनारायण कथा प्रसाद,गोपों ने राजा को भिजवाया।
अपने ही मद में चूर राजा ने, प्रसाद को न हाथ लगाया।।
सत की उपेक्षा से सत्यनारायण, तुंगड्ध्वज से रुष्ट हुए।
अविद्या अहंकार के कारण,राजा के सतगुण नष्ट हुए।।
तिरस्कार से सत्यदेव के, तुंगड्ध्वज पथभ़ष्ट हुए।
अहंकार और असत से,राज धन वैभव नष्ट हुए ।।
स्वयं को कष्टों में घिरा देख,राजा मन ही मन घबराया।
निश्चय ही है कोप सत्यदेव का,भान राजा को आया ।।
अभिमान के वशीभूत मुझसे अपराध हुआ है।
प्रभुता पाकर हे कृपासिंधु,किसको मद नहीं हुआ है।।
मद के अंधकार के कारण,सत ओझल हो जाता है।
सत के ओझल होते ही,असत कर्म हो जाता है।।
सत और असत कर्म से ही तो, जीवन में सुख दुख आता है।
तिरस्कार से नारायण के ,मेरा सर्वस्व गया है।
आंख खुल गई,समझ आ गया,सत की शक्ति क्या है।।
गोप गणों के पास फिर राजा, दौड़ा दौड़ा आया।
क्षमा प्रार्थना पूजा कर राजा ने,कथा प्रसाद पाया।।
सत्य नारायण की परम कृपा से, खोया वैभव पाया।।
इस लोक सुख भोग किया और वैकुंठ सिधाया।।
काम क्रोध अति लोभ मोह, सत्कर्मों में बाधा हैं।
नाना बिषय अहंकार, असत से ही तो आता है।।
सत को बढ़ाती असत घटाती,कथा प्रसाद सत्य नारायण हैं।
युग युग से होता आया है, सत का ही आराधन है।।
जो जन इस पावन व्रत को,भाव भक्ति से करते हैं।
धन वैभव सुख समृद्धि, और संतति पाते हैं।।
रहते हैं भयमुक्त सदा, मनोनुकूल सफलता पाते हैं।
लोक और परलोक मनुज के, दोनों ही सुधर जाते हैं।।
जिन लोगों ने इस व़त को किया था, जन्म अगला कहता हूं।
सत्य नारायण की कथा का अब उपसंहार कहता हूं।।
निर्धन बाह्मण शतानंद अगले जन्म में,दीन सुदामा हुए।
श्रीकृष्ण को प्राप्त किया, सच्चे मित्र और बाल सखा हुए।।
लकड़हारा अगले जन्म में,भील राजा गुहराज हुआ।
प्राप्त हुए श्री राम जी उसको,अमर गुह का नाम हुआ।।
उल्कामुख नाम के राजा ने,राजा दशरथ का जन्म लिया।
पुत्र रूप में राम को पाकर, जन्म-जन्मांतर सफल किया।।
सत्यव्रती साधु वैश्य ने,राजा मोरध्वज का जन्म लिया।
वचन निभाने पुत्र को अपने, स्वयं आरे से चीर दिया।।
जन्म सफल किया राजा ने, विष्णु भगवान को प्राप्त किया।।
तुंगड्ध्वज नाम के राजा भी,स्वांभू मनु हुए हैं।
गोप गण भी अगले जन्म में,बाल कृष्ण के सखा हुए हैं।।
सत्य नारायण कथा कहने सुनने का, उत्तम फल मिलता है।
सत के अनुसरण से जीवन, सुख शांति से चलता है।।
मनोनुकूल और इच्छित फल,जन जन को मिलता है।।
सदमार्ग सत्कर्म निरत जो जन, ध्यान हृदय में लाते हैं।
लोक और परलोक सहित,सब काज सहज हो जाते हैं।।
पावन पुरूषोत्तम मास श्रावण, श्री हरि शिव का आराधन है।
पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत को” कथा”, श्री हरि चरणों में अर्पण है।।
सबका हो कल्याण धरा पर,सब स्वस्थ्य रहें सब सुखी रहें।।
दशों दिशाएं शांति भरी,सब सतपथ के मुखी रहें।।
सबकी मनोकामनाएं पूरी हों, श्री हरि सदा प्रसन्न रहें।
शत शांति और दया क्षमा,धारण हृदय में सदा रहें।।
।।इति श्री स्कन्द पुराणे रेवा खण्डे सत्यनारायण व्रत कथायां पंचम अध्याय सत्य नारायण व्रत कथा संपूर्णं।।