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23 Jun 2020 · 1 min read

ढ़ाल

जब मंडराएंगे युद्ध के बादल
और खोले जायेंगे शस्त्रागार
व्यस्त होंगे सभी युद्ध की तैयारियों में

तब मैं लिखूंगा एक लम्बी कविता

मेरे शब्दों में भी होगा विद्रोह तानाशाहों के विरुद्ध

पर मेरे लिखे शब्द किसी पर प्रहार नहीं करेंगे,
न हीं होंगे वो तीर और तलवार सरीखे नुकीले और धारधार

वो होंगे थोड़े से चपटे और थोड़े से गोल
उनसे बनाऊंगा मैं एक मजबूत ढाल

जब युद्ध होगा तो मैं अपनी ढाल आगे कर दूंगा
उस से टकराकर टूट जायेंगे सारे नुकीले और धारदार हथियार

और ढाल की आड़ में मैं बचा लूंगा

एक प्रेमी जोड़ा
छोटे बच्चे को दूध पिलाती माँ
एक पेड़ पर खेलती छोटी सी गिलहरी
और फूलों पर मंडराती कुछ तितलियाँ

जब युद्ध होगा समाप्त

तो फिर से एक प्रेम भरा जीवन बसाने के
मेरे पास पर्याप्त मात्रा में इंसानियत और उसके रखवाले होंगे !

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 293 Views
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