*अभी तो घोंसले में है, विहग के पंख खुलने दो (मुक्तक)*
अभी तो घोंसले में है, विहग के पंख खुलने दो (मुक्तक)
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अभी तो घोंसले में है, विहग के पंख खुलने दो
जरा माहौल में थोड़ा उसे कुछ मिलने-जुलने दो
समय के साथ यह छूकर, गगन को भी दिखा देगा
अभी भ्रम-भीरुता के भय-जनित टॉंकों को घुलने दो
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विहग = पक्षी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451