ग़ज़ल- चोट देने मुझे रुलाने आ
ग़ज़ल- चोट देने मुझे रुलाने आ
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चोट देने मुझे रुलाने आ
फिर से जलवा वही दिखाने आ
अब तो खुशियाँ हमें डरातीं हैं
ग़म की दुनियाँ जरा बसाने आ
मेरे आँसू उदास रहते हैं
इनको फिर से गले लगाने आ
अब ये आहें भी आह भरतीं हैं
झूठे वादे लिये पुराने आ
कौन जाने “आकाश” क्या होगा
वक्त को भी तूँ आजमाने आ
– आकाश महेशपुरी