होंठ खामोश हैं
हर जगह मौत का कहर क्यूँ है
जिंदगी खौफ में बसर क्यूँ है
होंठ खामोश हैं बदन टूटा
ग़म से इंसान तर-ब-तर क्यूँ है
ख़ुशनसीं शाम अब हुई बोझल
चाँद की तिरछी युँ नज़र क्यूँ है
ये परिंदे उड़ान भरते हैं
आदमी कैद में इधर क्यूँ है
सो गया शख़्स हौसला खोकर
आज वीरान उसका घर क्यूँ है
जगदीश शर्मा सहज