हॉं और ना
फूलों में फर्क है
फर्क है
हॉं और ना में भी
जब कोई कहता है- ‘हॉं’
तो वह गिरगिट में
उसी वक्त बदल जाता है,
वो तो सिर्फ ‘ना’ है
जो उसको हमेशा
आदमी बनाये रखता है।
कोई दीवार पर
तो कोई पत्थर पर
‘ना’ लिखता है,
कोई हुकूमत के आगे
भरी सभा में
‘ना’ कहकर चीखता है।
मेरी 53वीं काव्य-कृति : ‘मंथन’ से..
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
बेस्ट पोएट ऑफ दि ईयर।