Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2023 · 3 min read

तेवरी ग़ज़ल से अलग कोई विधा नहीं + डॉ . परमलाल गुप्त

*************************
रमेशराज जो तेवरी आन्दोलन के प्रवर्त्तक हैं और ‘तेवरीपक्ष’ पत्रिका के सम्पादक भी, तेवरी को ग़ज़ल से अलग विधा मानते हैं। उन्होंने ‘निर्झर’ के ग़ज़ल विशेषांक – 91-92 में लिखा था-‘तेवरी के किसी भी छन्द की रचना करते समय स्वर और लय की आवश्यकता होती है, जबकि उर्दू में ग़ज़ल लिखने के लिए लय के साथ वज्न, बह्र पर ध्यान देना जरूरी होता है। इस बात का उत्तर इसी अंक में डॉ. जे.पी. गंगवार के इस कथन से मिल जाता है-‘‘आज हिन्दी ग़ज़ल उर्दू अर्कानों, बह्रों और वज्न की बंदिश तोड़कर हिन्दी और संस्कृत के घनाक्षरी छन्द तक आ गयी है।’’
डॉ. गंगवार ने रमेशराज की तरह ऐसे कुछ उदाहरण भी दिये हैं। वे ग़ज़ल और तेवरी में जिस्मानी तौर से कोई अन्तर नहीं देखते और दोनों को जुड़वाँ बहनें कहते हैं- एक शालीन और दूसरी तेज-तर्रार। नरेन्द्र वशिष्ठ, शिव ओम अम्बर, तारिक असलम आदि ग़ज़ल को सभी प्रकार की अभिव्यक्ति में समर्थ मानते हैं।
शिवओम अम्बर के अनुसार-‘‘आज की ग़ज़ल किसी शोख नाजनीन की हथेली पर अंकित मेंहदी की दन्तकथा नहीं, युवा आक्रोश की मुट्ठी में थमी हुई प्रलयंकारी मशाल है, वह रनवासों की स्त्रियों से प्राप्त की गयी किसी रसिक की रसवार्ता नहीं, बल्कि भाषा के भोजपत्र पर विप्लव की अग्नि-ऋचा है।’’
तारिक अस्लम तस्नीम कहते हैं-‘‘ग़ज़ल शिल्प, कथ्य, कलात्मकता, वैचारिक प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से जितनी शीरी है, उतनी ही तल्ख भी, जो समसामयिकता और हालात से गहरे रूप से जुड़ी है।’’ [तेवरीपक्ष, अंक 7, पृ. 15 ]
ये कथन तेवरी का कोई अलग अस्तित्व कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से स्वीकार नहीं करते।
रमेशराज ने ‘तेवरी’ को अलग विधा के रूप में वकालत करते हुए काफी लिखा है, दूसरे कई लोगों ने भी। मैंने भी रमेशराज के आग्रह पर एक आलेख ‘हिन्दी-काव्य में तेवरी’ लिखा, जो ‘तेवरीपक्ष’ जु.-सि. 88 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इससे प्रायः लोगों की यह धारणा बनी कि मैं तेवरी’ का अलग विधा का समर्थक हूँ। डॉ. यज्ञ प्रसाद तिवारी ने मेरे इस आलेख के संबंध में लिखा था- ‘डॉ. परमलाल गुप्त की समीक्षा ‘हिन्दी-काव्य में तेवरी’ तेवरी समूह के संघर्ष और सिद्धान्त-दर्शन का विश्लेषण करने में पूर्णतः समर्थ है।’’ [ तेवरीपक्ष, अंक 6, पृष्ठ 3]
वास्तव में मैंने अपने इस आलेख में ग़ज़ल के पूर्व रूप और उससे विलगाव प्रकट करने वाले ‘तेवरी संग्रहों के काव्य और शिल्पगत अन्तर’ का विवेचन किया था और बताया था कि इनमें ग़ज़ल का कोमल स्वरूप समाप्त करके उसे अधिक जुझारू और आक्रोशमय बनाया गया है और भाषा तथा शिल्प के साजसँवार की नयी कोशिश नहीं की गयी है। मैंने ये चेतावनी भी दी थी कि विचारपक्ष की प्रधानता होने के कारण तेवरी में ग़ज़ल के कलात्मक पक्ष का जो ह्रास हुआ है, उससे यह ग़ज़ल से तो भिन्न हो ही गयी है, सामाजिक उपादेयता के बावजूद इसके काव्यात्मक मूल्य पर कुछ प्रश्नाचिन्ह लगा है। आगे इसका क्या स्वरूप बनता है, यह देखना है। यहाँ प्रसंगवश कुछ तेवरियों के उदाहरण दृष्टव्य हैं, जो तेवरीपक्ष के उसी अंक में प्रकाशित हुई थीं-
1- अब कलम तलवार होने दीजिए,
दर्द को अंगार होने दीजिए
2-शब्द अब होंगे दुघारी दोस्तो,
जुल्म से है जंग जारी दोस्तो।
– दर्शन बेजार
2-शब्दों में बारुद उगाना सीख लिया,
कविता को हथियार बनाना सीख लिया।
-सं.-रमेशराज, इतिहास घायल है, पृष्ठ 44
ऐसी तेवरियों के संबंध में मैंने उसी आलेख में ‘कविता को हथियार के रूप में इस्तैमाल करने वाले प्रगतिवादी नजरिये से उत्पन्न होने वाले व्यक्तित्व के प्रति खतरे का संकेत किया था।
यह प्रश्न विचारणीय है, क्योंकि महत्व किसी के ‘ग़ज़ल’ या तेवरी’ होने से नहीं, बल्कि अच्छी कविता होने में है।’ आज जब ग़ज़ल के शिल्प का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया जा रहा है और उर्दू ग़ज़ल के काफिये, बहर आदि बातों को महत्व दिया जा रहा है, जो इस समय की ‘उत्तर कविता’ के लिए बेमानी है।
हिन्दी ग़ज़ल अपनी भाषा में स्वभाव के अनुरूप ढल कर जहाँ एक ओर ‘ग़ज़ल’ का रूप धारण करती है, वहीं दूसरी ओर ‘तेवरी’ का। हमें इस विवाद को छोड़ देना चाहिए कि कौन-सी रचना किस विधा में लिखी गयी है। ‘तेवरी’ ग़ज़ल का ही एक रूप है अथवा वह स्वतंत्र विधा है, कविता के सौंदर्य में महत्व विधा का नहीं हुआ करता, उसके व्यक्तित्व के उत्कर्ष का होता है। यदि हम ‘तेवरी’ को ग़ज़ल का ही एक बदला हुआ रूप मान लें, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इसका विकास तो ग़ज़ल से ही हुआ है। ‘उत्तर कविता’ में कथ्य के रूप में अधुनातन बोध और छन्द तथा लय की प्रेरकता प्रमुख तत्त्व होंगे।

118 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गरीबी और भूख:समाधान क्या है ?
गरीबी और भूख:समाधान क्या है ?
Dr fauzia Naseem shad
दूर नज़र से होकर भी जो, रहता दिल के पास।
दूर नज़र से होकर भी जो, रहता दिल के पास।
डॉ.सीमा अग्रवाल
#शेर
#शेर
*Author प्रणय प्रभात*
गठबंधन INDIA
गठबंधन INDIA
Bodhisatva kastooriya
💐प्रेम कौतुक-173💐
💐प्रेम कौतुक-173💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मुक्तक
मुक्तक
Mahender Singh
राम की रहमत
राम की रहमत
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
परमेश्वर का प्यार
परमेश्वर का प्यार
ओंकार मिश्र
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हर इंसान को भीतर से थोड़ा सा किसान होना चाहिए
हर इंसान को भीतर से थोड़ा सा किसान होना चाहिए
ruby kumari
गृहस्थ के राम
गृहस्थ के राम
Sanjay ' शून्य'
कहानी :#सम्मान
कहानी :#सम्मान
Usha Sharma
जन्म से मरन तक का सफर
जन्म से मरन तक का सफर
Vandna Thakur
దేవత స్వరూపం గో మాత
దేవత స్వరూపం గో మాత
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
ऐसे हैं हमारे राम
ऐसे हैं हमारे राम
Shekhar Chandra Mitra
भगोरिया पर्व नहीं भौंगर्या हाट है, आदिवासी भाषा का मूल शब्द भौंगर्यु है जिसे बहुवचन में भौंगर्या कहते हैं। ✍️ राकेश देवडे़ बिरसावादी
भगोरिया पर्व नहीं भौंगर्या हाट है, आदिवासी भाषा का मूल शब्द भौंगर्यु है जिसे बहुवचन में भौंगर्या कहते हैं। ✍️ राकेश देवडे़ बिरसावादी
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
उत्तंग पर्वत , गहरा सागर , समतल मैदान , टेढ़ी-मेढ़ी नदियांँ , घने वन ।
उत्तंग पर्वत , गहरा सागर , समतल मैदान , टेढ़ी-मेढ़ी नदियांँ , घने वन ।
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
"जब"
Dr. Kishan tandon kranti
बिल्कुल नहीं हूँ मैं
बिल्कुल नहीं हूँ मैं
Aadarsh Dubey
बादल (बाल कविता)
बादल (बाल कविता)
Ravi Prakash
"किस किस को वोट दूं।"
Dushyant Kumar
2658.*पूर्णिका*
2658.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सीख बुद्ध से ज्ञान।
सीख बुद्ध से ज्ञान।
Buddha Prakash
भारत माँ के वीर सपूत
भारत माँ के वीर सपूत
Kanchan Khanna
कुछ राज, राज रहने दो राज़दार।
कुछ राज, राज रहने दो राज़दार।
डॉ० रोहित कौशिक
फक़त हर पल दूसरों को ही,
फक़त हर पल दूसरों को ही,
Mr.Aksharjeet
हमारी काबिलियत को वो तय करते हैं,
हमारी काबिलियत को वो तय करते हैं,
Dr. Man Mohan Krishna
वर्तमान युद्ध परिदृश्य एवं विश्व शांति तथा स्वतंत्र सह-अस्तित्व पर इसका प्रभाव
वर्तमान युद्ध परिदृश्य एवं विश्व शांति तथा स्वतंत्र सह-अस्तित्व पर इसका प्रभाव
Shyam Sundar Subramanian
।। कसौटि ।।
।। कसौटि ।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
Loading...