हे शिव ! सृष्टि भरो शिवता से
हे शिव! सृष्टि भरो शिवता से
दृष्टि, वृत्ति सब शिवमय कर दो ।
हरो अपावन त्रिविध ताप सब
पुण्य तपों की वृष्टि कर दो ।
प्रकृति करो सब उर्जित सत् से
मन मे श्रृद्धा, संयम बल दो ।
पार कर सकूं जीवन बैतरिणी
इतना साहस उर में भर दो ।
जग का सब विष कंठ तुम धारे
सबके दोष क्षमा कर तारे ।
मेंरे भी सब दोष हरो अब
पथ में कुछ दो संग उजियारे ।
हे जग त्राता ! हे शिव शम्भू !
करते शमन त्रास सब भू के ।
मुझको भी शिवलोक बुला लो
चरण बहुत ये चलकर हारे ।