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12 Jun 2023 · 1 min read

है कब चांद आसमां से रूठता

क्या कहूं वो शब्द नहीं जो बयां तुझको कर सके
और हर लफ्ज़ जायां हुए जो जिक्र तेरा न कर सके
रहा डूबा याद में तंहा हुआ जब भी कभी
और चाहकर भी हम कभी महफिल में ना रह सके
तू ही मेरी याद है तू ही मेरी जज़्बात है
तू ही मेरा लखते जिगर तू ही मेरा हर ख्वाब है।।
टूटे दिल भी मेरा जब भी ख्वाब तेरा टूटता
तुझे जिस दिन न देखूं वो दिन अधूरा छूटता
है सुनहरे धूप सी तेरे होठों की हंसी
तू ही बता कब चांद है आसमां से रूठता।।

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