है कब चांद आसमां से रूठता
क्या कहूं वो शब्द नहीं जो बयां तुझको कर सके
और हर लफ्ज़ जायां हुए जो जिक्र तेरा न कर सके
रहा डूबा याद में तंहा हुआ जब भी कभी
और चाहकर भी हम कभी महफिल में ना रह सके
तू ही मेरी याद है तू ही मेरी जज़्बात है
तू ही मेरा लखते जिगर तू ही मेरा हर ख्वाब है।।
टूटे दिल भी मेरा जब भी ख्वाब तेरा टूटता
तुझे जिस दिन न देखूं वो दिन अधूरा छूटता
है सुनहरे धूप सी तेरे होठों की हंसी
तू ही बता कब चांद है आसमां से रूठता।।