*हुड़दंगी यह चाहते, बने अराजक देश (कुंडलिया)*
हुड़दंगी यह चाहते, बने अराजक देश (कुंडलिया)
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हुड़दंगी यह चाहते, बने अराजक देश
नगर-नगर हर गॉंव में, फैले भारी क्लेश
फैले भारी क्लेश, देश का साहस टूटे
अपनों के ही हाथ, शीश अपनों का फूटे
कहते रवि कविराय, गलत है चाल दुरंगी
जिन्हें देश से प्यार, बनेंगे क्यों हुड़दंगी
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451