हिंसा
हिंसा
उद्धवंस की
जननी है,
प्रलयकारी है।
जन हिंसा
या
युद्ध की विभीषिका
रक्त-सरिता
बहाती है,
बसी-बसाई
बस्तियों को
मुरदघट्टा बनाती है,
खाक-ए-दफन
करवाती है।
शोणित-होली
यातुधान
खेलते हैं,
इंसान हैं हम
इंसानियत की
बात
क्यों भूल जाते हैं।