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8 Nov 2021 · 5 min read

डॉ ऋषि कुमार चतुर्वेदी (श्रद्धाँजलि लेख)

डा. ऋषि कुमार चतुर्वेदी: एक निर्मल आत्मा
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डॉक्टर (प्रोफेसर) ऋषि कुमार चतुर्वेदी का 7 नवंबर 2019 को निधन हो गया ।रात्रि 9:00 बजे आपने रामपुर में तिलक कॉलोनी स्थित अपने निवास पर आखिरी साँस ली । यही रिटायरमेंट के पश्चात आपका स्थाई निवास था। आपका जन्म यद्यपि फर्रुखाबाद कन्नौज की तहसील में हुआ था लेकिन रामपुर में राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात रामपुर आपको इतना भाया कि आप रामपुर के होकर रह गए ।
किसी भी शहर को समृद्ध वे लोग बनाते हैं जिनके ऊँचे विचार होते हैं और जो उन उच्च विचारों के अनुरूप ही ऊँचे दर्जे का जीवन व्यतीत करते हैं ।ऋषि कुमार जी का नाम ऋषि था और वास्तव में आपका जीवन और आचरण ऋषि तुल्य ही था। सादगी, सहृदयता ,भोलापन ,भीतर की निर्मलता जैसे सद्गुण आप में कूट-कूट कर भरे थे। आपकी सज्जनता की किसी से तुलना नहीं की जा सकती थी। आपसे मिलना, बातें करना यह सब मानो गंगोत्री के पवित्र जल में स्नान करने के समान होता था ।अब इतने भीतर से पवित्र, निर्मल और निष्कपट लोग कहाँ हैं ! मानो विधाता ने उनकी रचना सतयुग के लिए की होगी और सचमुच अपनी उपस्थिति से उन्होंने सत्य पर आधारित वातावरण का निर्माण किया। उनके निकट लेखन का कार्य सत्य की आराधना ही थी। इसी के चलते वह अध्यात्म जगत से भी जुड़े और रामचंद्र मिशन शाहजहाँपुर की आध्यात्मिक गतिविधियों में न केवल सक्रिय हुए ,अपितु उसकी कुछेक पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद भी उनके द्वारा किया गया । पूज्य पिताजी के साथ उनका इस नाते काफी लंबा संपर्क रहा कि रामपुर में उन्होंने सुन्दरलाल इंटर कॉलेज में कुछ समय अध्यापन कार्य किया था ।फिर बाद में उनके सद् व्यवहार के कारण विचारों की एकरूपता स्थापित हुई और पूज्य पिताजी से उनका संपर्क निरंतर प्रगाढ़ रहा ।
जब हमने राम प्रकाश सर्राफ लोक शिक्षा पुरस्कार शुरू किया तो उसमें एक इच्छा ऋषि कुमार चतुर्वेदी जी को यह सम्मान प्रदान करने की थी और यह हमारा सौभाग्य रहा कि उन्होंने हमारे आग्रह को स्वीकार कर लिया। इसके अलावा भी विद्यालय के वार्षिकोत्सव में अध्यक्षता और मुख्य अतिथि का आसन ग्रहण करने के लिए जितनी बार भी हम उनके पास गए उन्होंने निराश नहीं किया । बाद में उन्हें सुनाई देना लगभग बंद हो गया था और फिर जब मैं उनसे अध्यक्षता के लिए आग्रह करने जाता था तथा बताता था कि आप की स्वीकृति मिल जाएगी तब कार्ड छप जाएंगे, तब उनसे कागज पर लिख कर बात करनी पड़ती थी। आपकी पत्नी आपको समझाने में सहायता करती थीं तथा उनका व्यवहार भी बहुत मृदु था ।
सैकड़ों समीक्षाएं पुस्तकों पर आपने लिखी हैं। न जाने कितने विद्यार्थियों ने आपके मार्गदर्शन में पीएचडी की उपाधियाँ प्राप्त की ।आप लेखक और समालोचक होने के साथ-साथ प्रभावशाली वक्ता भी थे ।आपकी वाणी में ओज था तथा आप का उच्चारण बहुत शुद्ध रहता था ।आपको सुनना भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि रहती थी ।
आपकी मृत्यु की सूचना मुझे 8 नवंबर को प्रातः काल डॉक्टर आलोक सिंघल के द्वारा फोन पर मिली । रामपुर में डॉक्टर आलोक सिंहल के पिताजी सुप्रसिद्ध कहानीकार तथा विचारक प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल के साथ सिंहल साहब के निवास पर आपकी रोजाना की बैठक होती थी । महेश राही जी भी उस बैठक में नियमित भागीदारी करने वाले साहित्यकार थे । मुझसे भी प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल साहब ने आने के लिए कहा था। मेरा तो जाना नहीं रहता था , लेकिन समय-समय पर मुझे बैठक के बारे में जानकारी होती रहती थी । यह बहुत उच्च कोटि के विचारों का आदान-प्रदान होता था तथा इसमें गहरी आत्मीयता का भाव निहित रहता था ।आपका स्वास्थ्य यद्यपि काफी लंबे समय से खराब चल रहा था, चलने फिरने में असुविधा थी लेकिन फिर भी जिन लोगों ने अपनी उपस्थिति से रामपुर के वायुमंडल में उच्च कोटि के जीवन मूल्यों को स्थापित किया ,आप उनमें से एक थे।
जब मैं आपके घर पहुँचा तो परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे। आपके छोटे बेटे जो गुड़गाँव में रहते हैं ,उन्होंने बताया कि जब आपका फोटो फेसबुक पर मैंने पिताजी को दिखलाया तो उन्होंने पहचान भी लिया और बहुत खुश हुए ।
सुबह 10:30 बजे कोसी के तट पर स्वर्ग धाम शमशान घाट पर आपका अंतिम संस्कार किया गया । इस अवसर पर आपके परिवार के सभी सदस्यों के साथ- साथ आपके निकट संबंधी तथा प्रशंसक उपस्थित थे । सभी का एक स्वर में यही कहना था कि अब ऐसे सहृदय व्यक्ति संसार में दुर्लभ हैं।आप की स्मृति को शत-शत प्रणाम ।
वर्ष 2009 में आप को समर्पित राम प्रकाश सर्राफ लोकशिक्षा पुरस्कार के अवसर पर दिया गया पढ़ कर सुनाया गया सम्मान पत्र इस प्रकार है :-

रामप्रकाश सर्राफ मिशन, रामपुर द्वारा रामप्रकाश सर्राफ लोकशिक्षा पुरस्कार से सम्मानित
डा० ऋषि कुमार चतुर्वेदी :

सम्मान पत्र

डा० ऋषि कुमार चतुर्वेदी राष्ट्रीय ख्याति के हिन्दी समालोचक हैं। किसी भी साहित्यिक परिदृश्य पर आपकी तटस्थ, निष्पक्ष तथा नपी-तुली पैनी समीक्षा बहुत मूल्यवान होती है। आप सहृदय, शांत तथा वास्तव में नाम के अनुकूल एक ऋषि-तुल्य व्यक्तित्व के धनी हैं। आपकी समालोचनाऍं भी आपके साधु-स्वभाव से अछूती नहीं हैं। आपकी आलोचनाऍं कटुता के भावों से सर्वथा मुक्त हैं। सबसे प्रेम करना तथा प्रेमपूर्वक सत्य को स्पष्ट कहने की स्वभावगत कला आपकी लेखनी में प्रकट होती है। गुटबाजी से परे आप एक अज्ञातशत्रु महामानव है।
आपका जन्म फर्रुखाबाद कन्नौज जिले की तहसील छिबरामऊ के गाँव बहबलपुर में 19 नवम्बर 1935 को हुआ। हाई स्कूल तक की शिक्षा छिबरामऊ से करने के पश्चात इंटरमीडिएट से एम. ए. तक की पढ़ाई कानपुर के प्रसिद्ध वी. एस. एस. डी. कालेज से की। सौभाग्य से आपकी योग्यता तथा रूचि के अनुरूप ही आपको जनवरी 1966 में राजकीय रजा महाविद्यालय रामपुर में हिन्दी प्रवक्ता पद पर नियुक्ति मिल गई। इसी महाविद्यालय से आप हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में वर्ष 1994 में सेवानिवृत्त हुए और रामपुर में ही बस गए। पूर्व में आपने 1960 से 1963 तक राजकीय रजा इण्टर कालेज तथा 1 963 से 1965 तक सुन्दर लाल इण्टर कालेज में भी अध्यापन कार्य किया। 1968 से पाँच वर्षों तक आपने डी.एस.बी. राजकीय महाविद्यालय नैनीताल में हिन्दी प्रवक्ता पद पर कार्य किया। इसी अवधि में आपको “रस-सिद्धान्त और छायावादोत्तर हिन्दी कविता” विषय पर पी. एच.डी.की उपाधि आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई। आपने 1973 से 1980 तक राजकीय महाविद्यालय चन्दौली (वाराणसी) में भी अध्यापन कार्य किया।
नैनीताल प्रवास में आपका सम्पर्क अपने वरिष्ठ सहयोगी समालोचक डा. राकेश गुप्त से हुआ, जिनके साथ मिलकर आपने सहसंपादक के रूप में 1976 से 2000 तक वर्ष-प्रतिवर्ष प्रकाशित कहानियों में से चयनित श्रेष्ठ कहानियों के संकलन विस्तृत भूमिकाओं के साथ प्रकाशित किए। यह एक बड़ा कार्य हैं।
अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखों तथा समीक्षाओं के प्रकाशन के अतिरिक्त “काव्यशास्त्र पर साहित्यानुशीलन” नामक एक वृहद ग्रन्थ, “आधुनिक हिन्दी कवि” नामक एक पुस्तक तथा “नया सप्तक” और ” गीति सप्तक” नामक संपादित संकलन विस्तृत भूमिका के साथ प्रकाशित हो चुके हैं।
रामपुर में रहते हुए लगभग एक दर्जन शोधार्थियों ने आपके निर्देशन में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। तात्पर्य यह है कि हिन्दी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में आपकी सेवाऍं बहुत मूल्यवान हैं।
आपने आध्यात्मिक जीवन मूल्यों से प्रेरित होकर रामचन्द्र मिशन शाहजहाँपुर के मार्गदर्शन में ध्यान-योग की साधना भी की। मिशन के कतिपय अंग्रेजी साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी आपने किया है। किसी शांत एवं गहरी नदी की भाँति आपकी जीवन धारा उच्च कोटि की श्रेष्ठ प्रवृत्तियों को दर्शाने वाली है। राग-द्वेष, लाभ-हानि तथा सुख-दुख के भावों से परे आपका जीवन सच्चे अर्थों में जीवन जीने की कला के सौंदर्य को दर्शाता है।
आपको वर्ष 2009 का रामप्रकाश सर्राफ लोकशिक्षा पुरस्कार सादर समर्पित है।
——————————
लेखक:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

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