“हिंदी, संस्कृति की पहचान तुम”
भाषा का पहला निवाला,
तुमने ही तो है खिलाया।
मां को मां सबसे पहले,
तुमने ही तो है बुलाया।
लिपट कर तुझसे ही,
तो पापा को मैंने बुलाया।
गुड़िया- गुड्डे, खेल – खिलौने,
तुमने ही तो है सिखाया।
गुरुओं की वाणी बन तुम,
विषयों को है समझाया।
तुम हो बिल्कुल गंगाजल सी,
निर्मल, निश्छल, सरला सी।
मेरी मां मेरी अभिमान तुम,
हिंदी, संस्कृति की पहचान तुम।।
© डा० निधि श्रीवास्तव”सरोद”