*** ” हिंदी और हिंदी दिवस………!!! ” ***
*** :: राष्ट्र की अभिलाषा हूँ मैं ,
भारत माँ की मधुर भाषा हूँ मैं ।
विद्या की एक पाठशाला हूँ मैं ,
हिमालय की किरीट ,
और हिन्दुस्तान की अमर अक्षुण्ण वरमाला हूँ मैं ।
पर…..!
देख आधुनिकता की भीड़ में ,
कैसे खो गई मैं ।
क्षेत्रियता से ग्रसित ,
अपनों के अपनापन से हो त्रासित ;
देख कैसे बिखेरी गई हूँ मैं ।
लगता है ऐसा कि…..!
गहरी नींद में सोती जा रही हूँ मैं ।
अपनों की विमुखता से ,
कुछ विकृत होती जा रही हूँ मैं ।
हे हिन्द के सुर लहरि ,
मेरे मन की पुकार सुन लो ,
मेरे हृदय की उद्गार गुन लो ।
प्यार की कुछ थपकी से ,
अपनेपन की महक से ;
अब जगा लो मुझे ।
अपने होंठों की लब्ज़ में उतार लो मुझे ,
अपने मन की अभिव्यक्ति में सजा लो मुझे ।
भूखी हूँ मैं ,
अपनों के तिरस्कार से ;
दबी हुई हूँ मैं ,
कुछ सरपरस्त परदेशी भाषा ,
संस्कृति, सभ्यता
और संस्कार से ।
हे हिन्द के भाग्य विधाता ,
सजावट हूँ मैं तेरे तन-मन की और
अखंड भारत की ।
मुस्कुराहट हूँ मैं तेरे मुखरित अभिब्यक्ति की ,
मधुर गुनगुनाहट हूँ मैं तेरे कण्ठों की ।
हूँ मैं सूरदास की सूरसागर ,
साहित्य लहरी साधना ।
हूँ मैं मीरा की गीत गोविंद ,
और अप्रतिम प्रेम की अराधना ।
मैं हूँ तुलसी की रामचरितमानस ,
कबीर की बीजक-साखी ,
और मैथिली शरण गुप्त की कमायनी-साकेत ।
मैं हूँ महाप्राण निराला की प्राण निरुपमा-परिमल ,
और मलिक मुहम्मद जायसी की चित्ररेखा-पद्मावत ।
*** :: चलो आज हम ” हिंदी ” दिवस मनाएँ ;
हिंदी कितनी विपुल-समृद्ध है ,
दुनिया को इससे आज अवगत कराएँ ।
हिंदी की लोकप्रियता को , हिंदी की सरसता को ;
जन-जन तक पहुंचाएँ ।
आओ हम सब मिलकर ,
आज हिंदी को एक उचित सम्मान दिलाएँ ।
” हिंदी ” तो देवभाषा ” संस्कृत “की,
महकती फुलवारी है ;
अंगरेजी तो “अंग्रेजों “से उत्पन्न ,
एक कुष्ठ रोग सी महामारी है ।
हिंदी तो हिन्दुस्तान की राष्ट्र भाषा है ,
फिर भी कहीं-कहीं अछुता-सा रह गया है ।
अंगरेजी की भारीपन से आज ,
” हिंदी-भाषी ” भी हिंदी से विमुख सा हो गया है ।
होकर वशीभूत अंगरेजी की ,
हम पश्चिमी सभ्यता में खो गए हैं ।
” हिंदी ” में कितनी ममता है ,
हिंदी में कितनी कृतज्ञता है , को भूल ;
आज हम अंगरेजी बुल (Bull) हो गये हैं ।
*** :: ” हिंदी ” है देश की ” बिंदी ” ,
आओ करें हम इसकी नमन ।
भाषाओं की महारानी को ,
आज बना दें हम फूलों की चमन ।
मधुरता की जयघोष को ,
पहुँचा दें हम अम्बर और गगन ।
चलो आज हम एक जिम्मा उठाते हैं ,
मेरी और तुम्हारी भाषा को ” हमारी ” भाषा बनाते हैं ।
देश में ही नहीं ,पूरे विश्व में ,
इसकी झण्डा लहराते हैं ।
” हिंदी ” में है प्रबल शक्ति ,
” हिंदी ” में है विनम्रता की कृति ।
” हिंदी ” की शक्ति से ही ,
” हिंदी ” की भक्ति से ही ,
” हिन्दुस्तान ” को बनाएँ सारे जहां में सर्व शक्तिमान ।
आओ … ओ ” हिंदी ” के रतन लाल ,
बना दें हम ” हिंदी ” को इतनी महान् ।
कर न सके अब कोई इसकी अपमान …..! ,
कर न सके अब कोई इसकी अपमान…….!!
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जय हिन्द जय भारत ,
हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ…!!!
* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
१४ / ०९ /२०२०