हा कोई अंजान हैं
हां कोई अनजान है
हां कोई अनजान है
न जान है न पहचान है,
माना कि देखा नहीं तुझे कभी मैंने
फिर भी लगता है जान पहचान है
अक्सर देखा है लोगों को बदलते
अपनों को गैरों में तब्दील होते,
इस भीड़ में शामिल होकर भी
कोई हाथ ऐसें थामेगा,
तपती रेत में जैसे कही बारिश की बूँद बन बरसेगा,
माना कि तुम साथ नहीं
खामोश जुबां पर कोई बात नहीं ,
दबी जुबां से इन हवाओं ने इशारा तो कुछ है किया,
कोई अजनबी है तेरे साथ में
नाम लेने से पर है उसने मना किया।
रचना झा…….