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23 May 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . गर्मी

दोहा पंचक. . . . . गर्मी

मेघा बरसें बाद में, पहले बरसे आग ।
सागर से लेकर चलें, बादल मीठे राग ।।

धरती अम्बर तप रहे, सूखे सारे ताल ।
घर से बाहर धूप तो , लगती जैसे काल ।।

कमरों में सब बन्द हैं, सड़कें हैं सुनसान ।
जीव -जन्तु व्याकुल सभी, रहम करो भगवान ।।

कूलर पंखे हांफते , लू की चली बयार ।
इन्द्रदेव से वृष्टि की, करने लगे गुहार ।।

पृथ्वी पर इस ताप का, कुछ तो करो निदान ।
आफत में हर जीव की, आज हुई है जान ।।

सुशील सरना / 23-5-24

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