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28 Aug 2023 · 1 min read

दिल का भी क्या कसूर है

दिल का भी क्या कसूर है
********************

दिल का भी क्या कसूर है,
तन – मन छाया फितूर है।

मंजिल कितनी भी दूर हो,
हाजिर हर दम हुजूर है।

गम की रोटी कबूल है,
तपता जैसे तनूर है।

बातें बेशक फिजूल सी,
हाथों में ना खजूर है।

बिगड़ा बिखरा नसीब है,
साजन बैठा सुदूर है।

मनसीरत भी न हीर सी,
रांझा भी बेकसूर है।
******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)

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