हास्य व्यंग्य
एक रात
रास्ते से गुजरते हुए
मुश्किल में
जान पड़ गई,
मुहल्ले वालो के लिए
मैं भी अनजान था,
गुजरते तो सभी हैं,
पर मेरा,
पैर फिसल गया,
स्लोप से टकरा कर,
*बनी थी पगडण्डी जो पैदल चलने को,
चढ़ गये,
घर घर स्लोप,मोटरकार चढ़ाने को,*
धड़ाम से गिरा,
सोया हुआ भी,
जाग उठे,
मगर,
ऐसा लगता है,
लोग जागे हुए थे,
समझदार ज्यादा थे,
सोच लिया होगा,
कोई शराबी है,
कोई पास न आये,
गनीमत हैं
प्रकृति ने सबको,
एक जीव,
एक योनी नहीं बनाये,
एक कुत्ता
एक कुत्ता आदत से लाचार,
समझ गये ना,
सूंघा
उठाया और
कर दिया,
होश आया,
लोगों की भीड़
सभी व्यर्थ चर्चा में लीन,
मेरी ही चर्चा,
गिरा कैसे ?
क्या मजाल
जो उस स्लोप पर,
किसी के मुख से
दो शब्द निकले,
दुनिया का दस्तूर है
साहेब !
ये दुनिया ऐसे ही चलती है,
अवैध निर्माण नहीं रुक सकते.
एक ने किया
दूसरा तैयार है,
बत्तीस मंजिल टवीन टॉवर.
सबूत है,
कैसे बन गई,
आंख में रोशनी ना होने वाला,
दृष्टि वाले अंधे से ज्यादा अच्छा है.