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17 Feb 2024 · 1 min read

हवन – दीपक नीलपदम्

हवन हुआ, ये धुआं उठा,

मैं होम हुआ जाने किसपर,

जाने कौन पुकारे मुझको,

निकल गया मैं किस पथ पर ।

पैरों के नीचे अंगारे,

हाथों में समिधा की गठरी,

दिल में थामे तूफानों को,

आँखों में समाहित बलिवेदी।

घर की ड्योढ़ी छोड़ चले,

हम देश की ड्योढ़ी पर ठाड़े,

चढ़ी त्यौरियों से कोई,

मेरे देश पर दृष्टि न गाड़े।

बड़ बलिदानी देवों ने

देश स्वतंत्र कराया था,

नवजवान आहुतियाँ देकर,

देश रंगीला पाया था ।

धर्म-पंथ-मज़हब-औ-रिलीजन,

सब कुछ है अंगीकार इसे,

पर देश अहित कोई बोले,

है हरगिज न स्वीकार मुझे।

कदम बढ़े हैं, सैलाबों को,

अनुशासित कर जाने को,

तटबन्ध तोड़ती नदियों को,

अच्छे से साबत सिखाने को।

है ललाट पर तिलक मात का,

पीठ पिता की थपकी है,

नहीं फरक पड़ता फिर, गीदड़-

भभकी है या धमकी है।

मेरे देश का रोमा-रोमा ,

सोने से अनमोल मुझे,

दुश्मन तू मिट जायेगा,

माँ माटी की सौगंध मुझे।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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