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4 Feb 2024 · 1 min read

पिता और पुत्र

कंधे पर,
अपने पिता के ,
बेटा चढा है ,
मेला दिखाने ,
नङ्गे पाव,
ठेलम-ठेल मे वह दौडा है ।

कभी जलेबी,
खिलौने भी,
जब उसने चाहा है,
रेजकी गिन-गिन के
हर माॅग उसके,
हर्षित मन से पुरा किया है ।

हाथ पकड,
पाठशाला भी,
उसको पहुँचाया है ,
पढाई मे,
कोई कसर शेष न रह जाय,
यह चिंता हमेशा पिता को सताया है ।

बच्चे जब ,
था नन्हा -छोटा,
रहकर साथ वह दिन गुजारा है,
पंख उसके जब,
लगी पढाई की,
छोड पिता को बेटा उड गया है ।

अशक्त जब,
बना पिता,
देखभाल कोइ करे- वह ललाइत हैं,
अब तो बच्चे के ,
फोन इन्तजार मे,
महिनों वह गुजार देता हैं ।

#दिनेश_यादव
काठमाडौं, (नेपाल) #हिन्दी_कविता #Hindi_Poetry

Language: Hindi
1 Like · 85 Views
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