हर चढ़ते सूरज की शाम है,
हर चढ़ते सूरज की शाम है,
दिन भर की बातें तमाम है।।
रात की बाँहों में सुकून से बिता लूँ,
सुबह होते ही बहुत काम है।।
आज का जो भी है तुरंत निपटा लेता हूँ,
कल परसो को देखा किसने क्या सर्दी या जुकाम है।।
सटीक संतुलित सतर्क कदम बढ़ते रहेंगे,
कमर कस के पेटी बांध लेने मे भला जाता क्या है।।
•• लखन यादव••
गाँव:- बरबसपुर (बेमेतरा) ३६ गढ़