हर अश्क कह रहा है।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
उम्मीद की रौशनी में यूं इश्क हो रहा है।
बड़ा ख्वाब गरीब नजरों में सज रहा है।।1।।
इश्क पर किसी का ना जोर चल रहा है।
कैद में है बुलबुल और सैयाद रो रहा है।।2।।
ये सिसकती आवाज कब से आ रही है।
देखो पड़ोस के घर में ये कौन रो रहा है।।3।।
बड़ा हदीसो को पढ़ते थे वो मज़हब की।
इश्क हुआ है जबसे सबको भुला रहा है।।4।।
अब तो आजा नादां परिंदे तू घर को।
मां की आंखों का हर अश्क कह रहा है।।5।।
रिश्तों के जाल में ये दिल फंस गया है।
दुनियां में यूं जीना धोखा सा लग रहा है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ