‘हरि नाम सुमर’ (डमरू घनाक्षरी)
भुव विलय प्रलय,
झष प्रकट सदय,
ऋषि स्वधर कमर,
कर जलधि तरण।
कर दमन असुर,
मुदित वदन सुर,
हरि भजत भजन,
गज विपद हरण।
हृदय दरिद दुख,
हरि भज भर सुख,
कट सकल विपद,
गत चरण शरण ।
वदन झलक चम,
सर सर भग तम,
हर कुमति विमति,
छवि हृदय वरण।।
गोदाम्बरी नेगी
(हरिद्वार उत्तराखंड)