हरियाली
अब तप रहा है सूरज हमारा
और जल रही हमारी धरती है
तबे की तरह गर्म हमारे कमरों में
गर्मी अपनी मनमानी करती है
सड़कों पर वृक्षों की छाॅंव अब
पहले की तरह कहाॅं सजती है
प्यारी कोयल भी पहले की तरह
कू कू भी तो अब नहीं करती है
नदियाॅं भी अब अपनी लय में
निर्भय होकर कहाॅं बह पाती है
धरती की हरियाली भी अब तो
कुछ लोगों की ऑंखों में गड़ जाती है
बढ़ रहा है जनसंख्या का भार
कोई भी नहीं पाएगा उससे पार
जीने का बदला है अब मूलाधार
लकड़ी का भी अब बढ़ा है व्यापार
धरती की अलौकिक सुन्दरता तो
अब धीरे-धीरे हो जाएगी तार-तार
अभी भी अगर नहीं संभले हम
धरती बन जाएगी मरूभूमि थार