हम-सफ़र
वादा करके वो भूल भी जाएं तो क्या,
चाहा जिन्हें हम भूल ना सके तो क्या ,
ज़ीस्त की राह में ,वो हम-सफ़र बने थे,
उनके इंतज़ार में हम मोड पर खड़े थै ,
हम वहीं पर खड़े रह गए तो क्या ,
वो ही रास्ता बदल बढ़ गए तो क्या,
ज़ेहन में यादों के अब्र छंटते नहीं ,
ख़्वाबों- ख़यालों के एहसास मिटते नहीं ,
दिल में जो पैवस्त हैं, उन्हें भुलाऊं कैसे ?
रूह में जो यकसाँ हो गए हैं, उन्हे निकालूं कैसे ?