हम लड़खड़ाए फिर संभल कर चल दिए।
सब अपनी मजबूरियां उठाए चल दिए
हम लड़खड़ाए फिर संभल कर चल दिए।
कौन रोकेगा लुटेरों को वतन को लूटने से
हम कुछ सुस्त कुछ तेज कदम से चल दिए।
अब मयस्सर न रहा कुछ सुकून के पल
रहबर हाँथ हिलाए फिर आगे चल दिए
हम खोजते हैं दयारों में अमन के चंद पल
वो गाँधी को फिर से मार कर चल दिए ।
धर्म के चरखे पे राम नाम का सूत काट कर
हांथों में खंजर थमा कर हंसते हुए चल दिए !
…
…सिद्धार्थ…