हमरा अप्पन निज धाम चाही…
हमरा अप्पन निज धाम चाही…
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हमरा अप्पन निज धाम चाही ,
हमरा अप्पन निज गाम चाही ,
जनकसुता केऽ ई पुण्यभूमि में ,
एतऽ हमरा अपन पहचान चाही।
हमरा अप्पन निज धाम चाही ,
मिथिला के अप्पन सुराज चाही…
निमि पुत्र मिथि राज बनौलक ,
राजा जनक मिथिला के सजौलक ,
विदेह तिरभूक्ति अंग प्रदेश संग छल ,
ग्रंथ प्राचीन देखु,कोना मिथिला बनल छल ,
हमरा ओहि पुरातन साम्राज्य चाही ,
मिथिला मैथिल छी,अप्पन राज चाही।
हमरा अप्पन निज धाम चाही,
मिथिला के अप्पन सुराज चाही..
गौरवमयी इतिहास एकर छल ,
विद्यापति सनि कविराज एतऽ छल ,
अयाची केऽ पुण्य सऽ धरा स्वर्ग छल ,
आब हमरा ओ अप्पन स्वाभिमान चाही ।
हमरा अप्पन निज धाम चाही,
मिथिला के अप्पन सुराज चाही…
समृद्ध विरासत खेत खलिहान छोड़ायल ,
चूड़ी-लहठी उद्योग,सीकी कला हेरायल ,
पान मखान संगहि पोखरि सभ सुखायल ,
हमरा आओर नहीं अप्पन अपमान चाही।
हमरा अप्पन निज धाम चाही,
मिथिला के अप्पन सुराज चाही…
अप्पन संस्कृति आओर कला सब छूटल ,
जटा-जटिन,बटगमिनी झिझिया रुठल ,
गोसावनि गीत,पराति केऽ परंपरा छूटल ,
आब याचना नहिं हमर अधिकार चाही।
हमरा अप्पन निज धाम चाही,
मिथिला के अप्पन सुराज चाही…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०८/२०२२
भाद्रपद, कृष्ण पक्ष ,अष्टमी ,शुक्रवार ।
विक्रम संवत २०७९
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