Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Mar 2024 · 3 min read

रंगों का महापर्व होली

रंगों का महापर्व होली
****************

विश्व में संभवतः भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां पर प्रकृति में होने वाले प्रत्येक प्रकार के सकारात्मक बदलाव को एक उत्सव अथवा एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। उत्सव आत्मा का स्वभाव है किसी भी उत्सव को आध्यात्मिक होना ही है।आध्यात्मिकता के बिना एक उत्सव में गहराई नहीं आती” । इसी का ज्वलंत उदाहरण रंगों का महापर्व होली है। बुराई पर अच्छाई की जीत और रंगों के त्यौहार के रूप में मनाई जाने वाली होली को वसंत के आरम्भ और शीत ऋतु के समापन के रूप में मनाया जाता है। होली के समय मौसम में होने वाले इस परिवर्तन का बहुत महत्व है। होली के ज्योतिषीय और शास्त्रीय पहलू पर यदि हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि होली की मूल कथा होली के दो मुख्य पहलुओं से जुड़ी हुई है। जिनमे से एक है – होलिका दहन और दूसरी है धुरेड़ी जो कि रंगों का उत्सव है। यह होलिका दहन के अगले दिन मनाया जाता है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

हम सभी ने बचपन से भक्त प्रह्लाद और होलिका की कहानी सुनी है। प्रह्लाद असुरों के राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र था। प्रह्लाद जन्म से ही भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, जिसे हिरण्यकश्यप एक नश्वर शत्रु मानता था। प्रह्लाद के पिता ने उसे हर तरह से भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकने का प्रयास किया, किन्तु प्रह्लाद की भक्ति अटूट थी। इससे तंग आकर हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को कई बार तरह-तरह से जान से मारने की कोशिश की लेकिन चमत्कारिक रूप से प्रह्लाद हर बार बच गया। चूंकि हिरण्यकश्यप की बहन, ‘होलिका’ को वरदान मिला था कि अग्नि उसे कभी नहीं जला सकती। एक बार होलिका ने हिरण्यकश्यप को सुझाव दिया कि वह प्रह्लाद के साथ अग्नि की एक चिता में बैठेगी और इस प्रकार प्रहलाद अग्नि में जलकर मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा और होलिका सुरक्षित बच जाएगी ।

इस प्रकार लिए गए निर्णय को अमल में लाने हेतु फाल्गुन महीने की पूर्णिमा की संध्या पर होलिका बालक प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर एक चिता पर बैठ गई। वहां उपस्थित अन्य लोगों ने इस चिता को आग लगा दी। सभी के आश्चर्य का ठिकाना उस समय नही रहा जब उस दिन होलिका बुरी तरह से जल गई और मृत्यु को प्राप्त हुई। और भीषण अग्नि प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं कर पायी । यही बुराई पर अच्छाई की जीत है। इसीलिए हर फाल्गुन की पूर्णिमा के अगले दिन होली का उत्सव मनाया जाता है।

होली का एक गहरा ज्योतिषीय महत्व है जिसे उपरोक्त कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है। फाल्गुन में पूर्णिमा के दिन, सूर्य ‘कुंभ राशि’ में ‘पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र’ में होता है जबकि चंद्रमा ‘सिंह राशि’ में पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होता है। अब निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है कि पृथ्वी पर जीवन की उपस्थिति के पीछे सूर्य और चंद्रमा के संयोजन ही कारण है।आध्यात्मिक रूप से भी, सूर्य को हमारी आत्मा का कारक माना जाता है जबकि चंद्रमा को हमारे मन के रूप में निरूपित किया गया है। सूर्य को देवत्व का प्रकाश भी माना जाता है जबकि चंद्रमा को भक्ति का प्रतिनिधि कहा जाता है। यदि हम सूर्य को देवता के समकक्ष मानते हैं, तो चंद्रमा को भक्त माना जाएगा। शास्त्रों में भी, भगवान के परम भक्तों को चंद्रमा के रूप में मान्यता दी जाती है। फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसके स्वामी ‘शुक्र’ हैं । और सूर्य जिस नक्षत्र में है, उसके स्वामी ‘बृहस्पति’ हैं । शास्त्रों में कहा गया है कि असुरों के गुरु शुक्राचार्य हैं, जबकि बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। और इस नक्षत्र में, चंद्रमा की राशि ‘सिंह’ है, जो अग्नि का परिचायक संकेत है। यही कारण है कि सूर्य का पूरा प्रकाश पड़ने से फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा अर्थात भक्त, सिंह अर्थात अग्नि के प्रभाव में होता है और उसे कुछ भी नुकसान नहीं हो पाता है। इस दिन, परमात्मा की ऊर्जा अपने भक्त पर अपना पूरा ध्यान दे रही है क्योंकि पूर्णिमा वह दिन है जब पूरा चंद्रमा दिखाई देता है। इसका अर्थ है कि देवता अपने भक्तों को पूरी कृपादृष्टि से देख रहे हैं। इसलिए यह दिन ईश्वर की असीम अनुकम्पा से अपने अंदर की सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से निवृत्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

आप सभी को होली के पावन पर्व पर हार्दिक बधाईयां और ढेर सारी शुभकामनाएं।

इति।

इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

Language: Hindi
977 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Er. Sanjay Shrivastava
View all
You may also like:
कड़वा सच~
कड़वा सच~
दिनेश एल० "जैहिंद"
ज़िंदगी में बेहतर
ज़िंदगी में बेहतर
Dr fauzia Naseem shad
मेरा लड्डू गोपाल
मेरा लड्डू गोपाल
MEENU
अस्तित्व की ओट?🧤☂️
अस्तित्व की ओट?🧤☂️
डॉ० रोहित कौशिक
नियति
नियति
Shyam Sundar Subramanian
ज़िंदगी...
ज़िंदगी...
Srishty Bansal
चारू कात देख दुनियां कें,सोचि रहल छी ठाड़ भेल !
चारू कात देख दुनियां कें,सोचि रहल छी ठाड़ भेल !
DrLakshman Jha Parimal
बिहार दिवस  (22 मार्च 2023, 111 वां स्थापना दिवस)
बिहार दिवस  (22 मार्च 2023, 111 वां स्थापना दिवस)
रुपेश कुमार
चंदा का अर्थशास्त्र
चंदा का अर्थशास्त्र
Dr. Pradeep Kumar Sharma
हर एक रास्ते की तकल्लुफ कौन देता है..........
हर एक रास्ते की तकल्लुफ कौन देता है..........
कवि दीपक बवेजा
ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
वक्त थमा नहीं, तुम कैसे थम गई,
वक्त थमा नहीं, तुम कैसे थम गई,
लक्ष्मी सिंह
■ आज_का_खुलासा
■ आज_का_खुलासा
*Author प्रणय प्रभात*
मित्रता
मित्रता
Shashi kala vyas
खींच रखी हैं इश्क़ की सारी हदें उसने,
खींच रखी हैं इश्क़ की सारी हदें उसने,
शेखर सिंह
3311.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3311.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
आज़ाद हूं मैं
आज़ाद हूं मैं
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
मार   बेरोजगारी   की   सहते  रहे
मार बेरोजगारी की सहते रहे
अभिनव अदम्य
हमेशा..!!
हमेशा..!!
'अशांत' शेखर
*खो दिया सुख चैन तेरी चाह मे*
*खो दिया सुख चैन तेरी चाह मे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
World tobacco prohibition day
World tobacco prohibition day
Tushar Jagawat
रानी लक्ष्मीबाई का मेरे स्वप्न में आकर मुझे राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करना ......(निबंध) सर्वाधिकार सुरक्षित
रानी लक्ष्मीबाई का मेरे स्वप्न में आकर मुझे राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करना ......(निबंध) सर्वाधिकार सुरक्षित
पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'
प्रेम में पड़े हुए प्रेमी जोड़े
प्रेम में पड़े हुए प्रेमी जोड़े
श्याम सिंह बिष्ट
*जानो आँखों से जरा ,किसका मुखड़ा कौन (कुंडलिया)*
*जानो आँखों से जरा ,किसका मुखड़ा कौन (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
** राम बनऽला में एतना तऽ..**
** राम बनऽला में एतना तऽ..**
Chunnu Lal Gupta
जब बातेंं कम हो जाती है अपनों की,
जब बातेंं कम हो जाती है अपनों की,
Dr. Man Mohan Krishna
#drarunkumarshastri
#drarunkumarshastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आचार्य शुक्ल की कविता सम्बन्धी मान्यताएं
आचार्य शुक्ल की कविता सम्बन्धी मान्यताएं
कवि रमेशराज
मातृ रूप
मातृ रूप
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
खामोशी से तुझे आज भी चाहना
खामोशी से तुझे आज भी चाहना
Dr. Mulla Adam Ali
Loading...