हठ
हठी, हठी कहकर लोग
बेवजह लांछन लगाते हैं,
बचपन पर
नारी पर
राजा पर
हठी तो वह सूरज है
जो मना करने पर भी
ग्रीष्म में अग्निस्नान कराता है,
शिशिर में देखो तो
सारे आतप त्यागकर
हाड़ तलक कँपकँपाता है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
नेल्सन मंडेला ग्लोबल
ब्रिलियंस अवार्ड प्राप्त।