हक जता संकू
कुछ ऐसा करो मैं हक जाता सकूं।
दिल में है जो उलझने उसे बता सकूं।।
जिंदगी तो जी सकता नही तेरे संग।
कुछ पल तो है जो संग बिता संकू।।
अब जहर भी लगता है पीयूष उसे।
है कोई विष जो उसे पीला सकू।।
दर्द ही बन गई है दवा उसकी।
है कोई हाकिम तो उसे मिला सकूं।।
फुर्सत नही गैरों को गैर मकां पर।
है कोई आयना तो उसे दिखा सकूं।।