आने वाला कल
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आने वाला कल
जीने की चाहत
व्यथाओं से आहत
इस तरह
आज होती जा रही,
जिस तरह
धूप की तपिश
मौसम की दबिश
फूलों को
तार-तार करती जा रही।
है आवश्यकता
हमें और तुम्हें
आशा की शीतल छाया
व बागवान की परवरिश की
जिससे सुरक्षित हो
हमारा आज !
सर्वत्र प्रफुल्लित हो
आने वाला कल।
– डॉ० उपासना पाण्डेय