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21 Nov 2023 · 2 min read

#आग की लपटें

✍️

★ #आग की लपटें ★

कभी देखी है लहसुन की सड़ी हुई कली
ठीक उसके जैसा दिखता था वो
जो आज कश्मीरी सेब हो गया है

सब चोर हैं जी कहने वाला
सबसे बड़ा चोर निकला
दिन के उजाले में कैसा फ़रेब हो गया है

सिर्फ एक सिलाई मशीन और दस हज़ार
बहुत थोड़े हैं आज मुखिया जी
उधर निर्भया की माँ का भय खो गया है

दोस्त निकल पड़े हैं गलियों चौराहों पर
माँजायी को खुला छोड़ दे
स्वधर्माचरणपालन का समय हो गया है

वो जो महका करते थे बनके फूल कमल का
उन्हीं के हाथ से आज
उनके घर का पता खो गया है

चल पड़े हैं उन्हीं पगडंडियों पर सयाने
जिन पर चलकर बार-बार
इतिहास रो गया है

लौट आयी है दुम टांगों के बीच वापस
चार दिन की संगत कुर्सी की
अच्छा भला मानुष क्या से क्या हो गया है

कोई कोई नर कोई नाहर भी उनमें है
दमकती हैं कुछ सन्नारियां भी
वैसे कुल जमावड़ा किन्नर-सा हो गया है

शेर की खाल में वो सियार ही निकला
गान सुनकर हुआँ हुआँ
नया शाह रंगीला हो गया है

टेढ़मुंही घुड़की सुनकर मक्कार की
पायजामा बाप-बेटे का
आगे से गीला पीछे पीला हो गया है

वो इक सरदार जिसने टुकड़ों को समेटा
सपनों को लुटते पिटते न देख पाये
पुतला तभी बहुत ऊँचा हो गया है

राम का नाम रहेगा शेष धरा पर
यों लुटेरों की आज मौज बड़ी
धर्महीन देश का अब ढांचा हो गया है

आग की लपटें मेरे घर से हैं अभी दूर
आँख मूँदना और भागना
सदियों से यही काम मेरा सांचा हो गया है

२-१२-२०१९

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
159 Views
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