हँसिया
जम्मो रंधनी खोली म
हँसिया ह समाय हे,
तरकारी काटे-छोले म
बड़ काम आय हे।
हँसिया के जलवा देख
चाकू तरमराय हे,
हँसिया के सउत बनके
ओहू जघा बनाय हे।
नवा जमाना के लईका मन
नवा-नवा गोठियाथें,
हँसिया ल धर के बारी म
जाय बर ढेरियाथें।
हँसिया के तन-मन जम्मो
लोहा के बन जाथे,
जेन ह ऊँचा काम करथे
ओ लौह पुरुष कहाथे।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन- 2022