Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jun 2021 · 1 min read

-स्वार्थ से परे

मैं फिर खोजती हूं
वो बीता बचपन अपना..
जिन आंखों में था कंच जीतने का सपना,
वक्त की धारा में ना जाने कहां खो गया,
जवानी और जिम्मेदारी की तह में दफन हो गया,
काश! मैं बड़ी ना होती,
तो मां की गोद में चैन से होती,
लोरी गाकर वो सुलाती मुझे
गर मैं जरा भी रोती,
ना फ़िक्र होती आगे पढ़ने की
ना हसरत होती आगे बढ़ने की,
बस एक ही इच्छा होती
बचपन वाले झूले पर चढ़ने की,
पर स्वार्थ से परे जब मैं सोचती हूं
क्यों मैं अपना बचपन खोजती हूं,
मेरी मां का भी कोई बचपन था
उसने भी कुछ खोया था,
जिसको मां ने कुर्बान कर
हर वक्त मेरे लिए अपनी आंखों में सपनों को संजोया था।
– सीमा गुप्ता, अलवर ( राजस्थान)

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 289 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दोस्त ना रहा ...
दोस्त ना रहा ...
Abasaheb Sarjerao Mhaske
हज़ारों साल
हज़ारों साल
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
देख कर उनको
देख कर उनको
हिमांशु Kulshrestha
"तेरे लिए.." ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
*खामोशी अब लब्ज़ चाहती है*
*खामोशी अब लब्ज़ चाहती है*
Shashi kala vyas
संस्कारी बड़ी - बड़ी बातें करना अच्छी बात है, इनको जीवन में
संस्कारी बड़ी - बड़ी बातें करना अच्छी बात है, इनको जीवन में
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
अनजान लड़का
अनजान लड़का
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
Ek gali sajaye baithe hai,
Ek gali sajaye baithe hai,
Sakshi Tripathi
उम्मीद की आँखों से अगर देख रहे हो,
उम्मीद की आँखों से अगर देख रहे हो,
Shweta Soni
■ निकला नतीजा। फिर न कोई चाचा, न कोई भतीजा।
■ निकला नतीजा। फिर न कोई चाचा, न कोई भतीजा।
*Author प्रणय प्रभात*
चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
Atul Mishra
बेशर्मी से ... (क्षणिका )
बेशर्मी से ... (क्षणिका )
sushil sarna
जय भोलेनाथ ।
जय भोलेनाथ ।
Anil Mishra Prahari
आवारा परिंदा
आवारा परिंदा
साहित्य गौरव
मेरी कलम से...
मेरी कलम से...
Anand Kumar
*नारी कब पीछे रही, नर से लेती होड़ (कुंडलिया)*
*नारी कब पीछे रही, नर से लेती होड़ (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
हिंदी दलित साहित्य में बिहार- झारखंड के कथाकारों की भूमिका// आनंद प्रवीण
हिंदी दलित साहित्य में बिहार- झारखंड के कथाकारों की भूमिका// आनंद प्रवीण
आनंद प्रवीण
ना जाने सुबह है या शाम,
ना जाने सुबह है या शाम,
Madhavi Srivastava
मैं गलत नहीं हूँ
मैं गलत नहीं हूँ
Dr. Man Mohan Krishna
काव्य का आस्वादन
काव्य का आस्वादन
कवि रमेशराज
आसमान पर बादल छाए हैं
आसमान पर बादल छाए हैं
Neeraj Agarwal
संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..
संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..
Ritu Asooja
आज का चिंतन
आज का चिंतन
निशांत 'शीलराज'
"बेहतर"
Dr. Kishan tandon kranti
The Magical Darkness
The Magical Darkness
Manisha Manjari
पिता के प्रति श्रद्धा- सुमन
पिता के प्रति श्रद्धा- सुमन
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
2991.*पूर्णिका*
2991.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऊपर से मुस्कान है,अंदर जख्म हजार।
ऊपर से मुस्कान है,अंदर जख्म हजार।
लक्ष्मी सिंह
मर्यादापुरुषोतम श्री राम
मर्यादापुरुषोतम श्री राम
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
सेल्फी या सेल्फिश
सेल्फी या सेल्फिश
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...