स्वभाव
अश्व न खाए मांस को, शेर न खाए घास।
सबकी अपनी प्रकृति है, इसमें क्या उपहास।।
कुछ ताड़ना से सुधरते, कुछ को चाहीए त्रास।
कुछ लाठी के भूत है, कुछ को चहिए बांस।।
सुअर विष्टा खात है, मत परसो तुम खीर।
बंदर को हल्दी दिया, कर गया गड़बड़ वीर।।
बातन से नही मानते, ये राक्षस के पूत।
इनकी बस एके दवा, जम के मारो जूत।।
जैसी जिसकी प्रकृति हो, वैसा करो इलाज।
धीरे धीरे ही सही, मिट जायहही सब खाज।।
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