स्वतन्त्रता दिवस पर एक नारी की पीड़ा –आर के रस्तोगी
71 वर्ष हो गये आजादी के,पर मैं अभी आजाद नहीं
दर दर ठोकरे खाती हूँ,पर कही मैं अभी आबाद नहीं
बचपन में पिता,जवानी में पति,बुढापे में पुत्र के आधीन रही
कैसा बीता मेरा ये जीवन, क्या किसी को यहाँ मालूम नहीं
बाहर निकल कर नहीं सुरक्षित,घर में भी मैं सुरक्षित नहीं
कैसे है मेरा असुरक्षित जीवन,क्या संसार को ये पता नहीं
करती हूँ जीवन भर सब की सेवा,फिर भी मिलता विश्राम नहीं
कैसी है ये देश की आजादी,कोई भी बतलाता मुझे अब नहीं
कहते है नारी देवी स्वरुप है,पर इसको क्यों नही समझता नहीं
सबको जनम देने पर भी ,मेरे जीवन का कोई अस्तित्व नहीं
इस अपमानित जीवन से अभी तक आजादी मुझे मिली नहीं
कैसे कह दू ये स्वतन्त्रता दिवस है,जब तक मैं स्वतन्त्र नहीं
आर के रस्तोगी