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26 May 2024 · 1 min read

रूप यौवन

गीतिका
~~
रूप यौवन चार दिन का मत करो अभिमान।
व्यर्थ ही करना नहीं हम को स्वयं गुणगान।

फूल खिलता खूबसूरत खूब महके छोर।
और करते हैं सभी सौंदर्य का रसपान।

मुस्कुराती है कली हर मन लुभाती खूब।
देख जिसको हर अधर पर खिल उठी मुस्कान।

देखते हैं आ रहा अब कौन किसके काम।
वक्त के अनुरूप बनती है अलग पहचान।

जब कदम आगे बढ़े हैं सामने है लक्ष्य।
पूर्ण कर लें हर इरादे जो लिए हैं ठान।

साथ बढ़ते हर हृदय में जब भरा उत्साह।
देखिए अब रुक नहीं सकता कभी अभियान।

छल कपट से दूर रहना है बहुत अनिवार्य।
भाव हो निश्छल तभी होता स्वयं उत्थान।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २६/०५/२०२४

2 Likes · 34 Views
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