स्त्रियों में ईश्वर, स्त्रियों का ताड़न
ईश्वर पूरी स्त्रियों में नहीं होता
मात्र आस्तिक स्त्रियों में होता है
आस्तिक स्त्रियों में भी पूरी शक्ति और मन से वह
सवर्ण स्त्रियों के भीतर उतरता है
इसमें भी
बाज सवर्ण स्त्रियां तो ख़ुद ईश्वर होती हैं और शिकारी होकर भी
शिकार जातियों में
स्त्री पुरुष दोनों द्वारा ही पूजी जाती हैं
ईश्वर और अपने सवर्ण पुरुषों के प्रताप से
सवर्ण स्त्रियां बिना जनेऊ पहने ही
द्विज होती हैं
इस लिहाज से वे अबला नहीं होतीं
बला की सबला साबित होती हैं
वे होती भी हैं अबला तो अपने घर आँगन मात्र में
अपने घर के द्विज मर्दों के कारण
उनके बीच केवल
अपने घर के बाहर वे
अपने मर्दों की तरह बदगुमान होती हैं
वर्ण मर्यादा से बंधी हुईं
अविकल विकारी होती हैं ये
प्रबल मनुऔलादी होती हैं
बहुजन स्त्रियों से
मनु-मन रख
घृणा के सबाब पर होती हैं
स्त्री अबला सही में है तो
केवल वे स्त्रियां
जो वंचित जातियों से हैं
तुलसीदास ने भले ही सभी स्त्रियों को
ताड़न का अधिकारी बना डाला हो
पुरुषों की अपेक्षा अबला साबित किया हो
एक ही डंडे से हाँक मगर
जहां सवर्ण पुरुषों के लिए उनकी अपनी स्त्रियां ताड़न का अधिकारी हो सकती हैं
वहीं वंचित जाति की स्त्रियां सवर्ण स्त्रियों से भी ताड़न पाने की अधिकारिणी होती हैं.