Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Sep 2024 · 1 min read

सोलह श्राद्ध

****सोलह श्राद्ध****

सोलह दिन यह पावन कितने
आते धरा पर हमारे अपने
जलांजलि दे क्षुधा पूर्ण करें
पिंडदान, श्राद्ध संपूर्ण करें

परलोक से पूर्वज पधारे
कभी जो थे मध्य हमारे
कोई क्षुधा न रहे अधूरी
हर आस तुम करना पूरी

विधि विधान से कर्म ये सारे
खुले रखना घर और द्वारे
अंजुनी जल से तृप्त तृष्णा
नेह मान से पूजा अर्चना

जीते जी उन्हें दुलारना
हिकारत से न कभी पुकारना
प्रेम सम्मान सदैव लुटाना
खोकर फिर ना पड़े पछताना

पूर्ण भाव से श्राद्ध तर्पण करें
भोजन मिष्ठान समर्पण करें
जौ, तिल,कुशा दुग्ध नीर से
पूर्वजों को आज अर्पण करें

छूट गया जो उन्हें भाग दो
हठ, निरादर को त्याग दो
अतृप्त आस पूर्ण करना
हॄदय में पावन भाव रखना

आयेंगे ना लौट के फिर कभी
जो कर गये निरादर सारे
रह जायेगी दहलीज सूनी
रुष्ट हुये जो पूर्वज हमारे

प्रेम पूर्वक व्यवहार करके
स्नेह सद्भाव मान लौटाना
ना कर सके यूँ जीवन में जो
कर्म, आस को पूर्ण बनाना

लौट जायेंगे लोक वे अपने
देकर नेह आशीष सारा
पूर्ण होंगे उम्मीद सपने
सँवर जायेगा जीवन हमारा

✍”कविता चौहान”
इंदौर (म.प्र)
स्वरचित एवं मौलिक

18 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
माॅं
माॅं
Pt. Brajesh Kumar Nayak
दीवाली की रात आयी
दीवाली की रात आयी
Sarfaraz Ahmed Aasee
कैसे करूँ मैं तुमसे प्यार
कैसे करूँ मैं तुमसे प्यार
gurudeenverma198
नारी वेदना के स्वर
नारी वेदना के स्वर
Shyam Sundar Subramanian
चेहरा सब कुछ बयां नहीं कर पाता है,
चेहरा सब कुछ बयां नहीं कर पाता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अनुगामी
अनुगामी
Davina Amar Thakral
बहुत हुआ
बहुत हुआ
Mahender Singh
■ स्वयं पर संयम लाभप्रद।
■ स्वयं पर संयम लाभप्रद।
*प्रणय प्रभात*
कब मेरे मालिक आएंगे!
कब मेरे मालिक आएंगे!
Kuldeep mishra (KD)
*लंक-लचीली लोभती रहे*
*लंक-लचीली लोभती रहे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
ऐसा कहा जाता है कि
ऐसा कहा जाता है कि
Naseeb Jinagal Koslia नसीब जीनागल कोसलिया
ख़ता हुई थी
ख़ता हुई थी
हिमांशु Kulshrestha
क्यूँ जुल्फों के बादलों को लहरा के चल रही हो,
क्यूँ जुल्फों के बादलों को लहरा के चल रही हो,
Ravi Betulwala
मेरे स्वप्न में आकर खिलखिलाया न करो
मेरे स्वप्न में आकर खिलखिलाया न करो
Akash Agam
रिश्ते से बाहर निकले हैं - संदीप ठाकुर
रिश्ते से बाहर निकले हैं - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
जितना आसान होता है
जितना आसान होता है
Harminder Kaur
बदल गया परिवार की,
बदल गया परिवार की,
sushil sarna
हद से ज्यादा बढी आज दीवानगी।
हद से ज्यादा बढी आज दीवानगी।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
नींद आती है......
नींद आती है......
Kavita Chouhan
*पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका समीक्षा*
Ravi Prakash
शिकायत है हमें लेकिन शिकायत कर नहीं सकते।
शिकायत है हमें लेकिन शिकायत कर नहीं सकते।
Neelam Sharma
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
कवि दीपक बवेजा
महानगर के पेड़ों की व्यथा
महानगर के पेड़ों की व्यथा
Anil Kumar Mishra
4274.💐 *पूर्णिका* 💐
4274.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
गर तुम हो
गर तुम हो
मनमोहन लाल गुप्ता 'अंजुम'
जब आओगे तुम मिलने
जब आओगे तुम मिलने
Shweta Soni
!! एक चिरईया‌ !!
!! एक चिरईया‌ !!
Chunnu Lal Gupta
लिखा है किसी ने यह सच्च ही लिखा है
लिखा है किसी ने यह सच्च ही लिखा है
VINOD CHAUHAN
What is the new
What is the new
Otteri Selvakumar
"शब्दों से बयां नहीं कर सकता मैं ll
पूर्वार्थ
Loading...