सोलह श्राद्ध
****सोलह श्राद्ध****
सोलह दिन यह पावन कितने
आते धरा पर हमारे अपने
जलांजलि दे क्षुधा पूर्ण करें
पिंडदान, श्राद्ध संपूर्ण करें
परलोक से पूर्वज पधारे
कभी जो थे मध्य हमारे
कोई क्षुधा न रहे अधूरी
हर आस तुम करना पूरी
विधि विधान से कर्म ये सारे
खुले रखना घर और द्वारे
अंजुनी जल से तृप्त तृष्णा
नेह मान से पूजा अर्चना
जीते जी उन्हें दुलारना
हिकारत से न कभी पुकारना
प्रेम सम्मान सदैव लुटाना
खोकर फिर ना पड़े पछताना
पूर्ण भाव से श्राद्ध तर्पण करें
भोजन मिष्ठान समर्पण करें
जौ, तिल,कुशा दुग्ध नीर से
पूर्वजों को आज अर्पण करें
छूट गया जो उन्हें भाग दो
हठ, निरादर को त्याग दो
अतृप्त आस पूर्ण करना
हॄदय में पावन भाव रखना
आयेंगे ना लौट के फिर कभी
जो कर गये निरादर सारे
रह जायेगी दहलीज सूनी
रुष्ट हुये जो पूर्वज हमारे
प्रेम पूर्वक व्यवहार करके
स्नेह सद्भाव मान लौटाना
ना कर सके यूँ जीवन में जो
कर्म, आस को पूर्ण बनाना
लौट जायेंगे लोक वे अपने
देकर नेह आशीष सारा
पूर्ण होंगे उम्मीद सपने
सँवर जायेगा जीवन हमारा
✍”कविता चौहान”
इंदौर (म.प्र)
स्वरचित एवं मौलिक