” सोचता हूँ “
” सोचता हूँ ”
अक्सर मैं ये सोचता हूँ
क्या शहर के इंसान ऐसे होते हैं,
सुबह के उजालों में जाकर
जो कहीं शाम ढले घर लौटते हैं।
” सोचता हूँ ”
अक्सर मैं ये सोचता हूँ
क्या शहर के इंसान ऐसे होते हैं,
सुबह के उजालों में जाकर
जो कहीं शाम ढले घर लौटते हैं।