“सोचता हूँ”
पता नहीं
यहाँ पर कैसे-कैसे
लोग रहते हैं,
सही को सही
और गलत को गलत
कहने की हिम्मत
क्यों नहीं करते हैं?
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
पता नहीं
यहाँ पर कैसे-कैसे
लोग रहते हैं,
सही को सही
और गलत को गलत
कहने की हिम्मत
क्यों नहीं करते हैं?
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति