सेना सर्व धर्म स्थल में
सेना सर्व धर्म स्थल में
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न सिख हिन्दू,मुस्लिम क्रिश्चियन,
सब हैं एक दूजे दिल में।
पूरी सेना पूजा करती,
सेना सर्व धर्म स्थल में।
कोई धर्म न ऊंचा नीचा,
न कोई छोटा नहीं बड़ा।
सब मिल सबका पर्व मनाते,
पूरा दल एक साथ खड़ा।
सेना मस्जिद तिलक लगाती,
अजान मंदिर में होवा।
चर्च पुजारी वाहे गुरु बोले,
ग्रन्थी कहे यहोवा।
ईद की सिंवई शुक्ल बनाते,
कड़ा प्रसाद रहमान।
माता भोग बनावे डेविड,
सबका सम सम्मान।
राम प्रिय रहमान प्रिय त्यों,
गॉड प्रिय प्रिय वाहेगुरु।
सम आदर है सब पर एक सा,
मिलकर करते अंत शुरू।
नहीं खालसा,न कैथोलिक,
मोमिन न ही बूत का परस्त।
एक नूर को मिलकर माने,
ऊपर करके दोनों हस्त।
सेना कहती है सांझा ज्यों,
तारा रवि शशि हवा गगन।
नदी,अचल,वन धरनी सांझी,
सांझा दूध अनाज अगन।
एक हाड़ है एक मांस है,
एक लहू एक सांसा।
एक ही सृजन हार सभी का,
एक सी आश निराशा।
सेना पथ सा देश चले गर,
न रहे पिछड़ा अगड़ा।
सबका सबसे बने मोहब्बत,
मिटे समूल सब झगड़ा।
सतीश सृजन, लखनऊ.