दबे पाँव से निकल गयी
वो मन की बात है जानें, मुख से न कह सकी,
गूंगी न थी वाचाल सी, लब्जो के खाये है ताने,
प्यार की जो पहली किरण, घन की आड़ मे आ गयी,
ओढ़ कोहरे की चादर, शान्त भाव से सो आयी। 💕
इन्तहा प्यार में, आंखो के रस्ते ही बह गयी,
इजहार करना अब अधरों पर, प्यासे पनघट सा रह गयी।
महल संजोया सपनों सा, रेत की भाँति ढह गयी।
खोया जो नैनो से मेरे, टप टप ओस सी बूँदे गिर गयी,
शाम ढल चली जीवन की, यौवन छोर जरा अब भा रही,
मन की बात हृदय के अंदर, बैरन बन कर बैठ गयी,
आहट पवन की सरसर सरसर , दबे पाँव से निकल गयी।
Written by –
Buddha Prakash
Maudaha Hamirpur.