सूरज दहकना नहीं छोड़ता
मौसम है बदलना नहीं छोड़ता,
आदमी गिरकर चलना नहीं छोड़ता,
स्वभाव कभी नहीं बदला करते,
कुछ भी हो पेड़ फलना नहीं छोड़ता।
कोई लाख समझा ले खुद को,
मन कल्पना में भटकना नहीं छोड़ता।
कितना भी सम्भाल के रखिए
बर्तन है खड़कना नहीं छोड़ता।
जब तक सांसें चलतीं रहती है
हृदय धड़कना नहीं छोड़ता।
जब बादल घनघोर हो जातें हैं
बिजली कड़क ना नहीं छोड़ता।
काजल का बोझ कितना भी हो
अंखियां झपकना नहीं छोड़ता
धूप, बारिश, पाला जो भी हो ,
पौधा पनपना नहीं छोड़ता।
कोहरा चाहे कितना भी ठंडा हो
सूरज दहकना नहीं छोड़ता।
भौंरे ,तीतली, मधुमक्खी मंडराते रहे
फूल महकना नहीं छोड़ता।
नूर फातिमा खातून” नूरी”(शिक्षिका)
जिला- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश