सुहाग..।।।
आज अपनी कोशिशों से अलग कुछ लिखने की कोशिश,आप सभी के सामने समीक्षा हेतु रख रहा हूँ आशीर्वाद प्रदान करें.।
सुहाग..।।।
हाँ सुहाग हूँ मैं
एक सुहागन के
माथे का ताज हूँ मैं
किसी ब्याहता के माथे का टीका
किसी के लिए पवित्र पूज्य
और किसी के लिए उसके माथे से
सदा लग कर रहने वाला
उसकी माँग का श्रृंगार हूँ मैं
मगर इधर के दिनों में मैं कुछ
उपेक्षित सा महसूस करने लगा हूँ ख़ुद को
कभी मैं हर ब्याहता नारी का
संबल हुआ करता था
मगर आज कई सुहागन मुझे
सुहाग की निशानी नहीं
मात्र एक लाल धब्बा समझती है
कभी मैं ब्याहता नारी की और
उसकी भरी माँग का
शुभ द्योतक हुआ करता था
मगर आज आपको मैं
कहीं खोजे नहीं मिलूँगा
मैं क्या आज आपको नारी के सर पे
उसके बालों,उसके जूड़े में
माँग ही बहुत खोजने पर मिलेगी
कभी मैं ब्याहता नारी के
माथे पर सुहाग की बिंदिया
बन कर चमकता रहता था
कभी मेरी अखंडता के लिए
कई कई दुआएं की जाती थीं
कभी मेरे नाम पर हाथों में
मेहंदी लगाई जाती थीं
कलाइयों में मेरे प्यार की
चूड़ियाँ खनका करती थीं
क्या क्या बोला जाता था मेरे लिए
“ऐसी दुआ है मेरी उस रब से
अखंड मेरा सदा सुहाग रहे
हर क्षण तेरे मन में मेरे लिए
बस प्यार की ही सौग़ात रहे
जब भी सोचूँ मैं तुझको साजन
बस तेरा अहसास पास रहे
हर घड़ी सुख या दुख हो
बस तेरे हाथों में मेरा हाथ रहे
तन मन में महको तुम हरदम
बनकर साँसों में साँस रहे
अखंड मेरा सदा सुहाग रहे,,
मगर आज आपको मैं घर के बाथरूम
,रसोई यहाँ तक शयन कक्ष की दीवारों की
शोभा बढ़ाते मिल जाऊँगा
आप मुझे पलंग,कुर्सी, पाया
और अगर कहीं नहींं तो
घर के दीवार से टंगे किसी आईने
से सटा तो मिल हीं जाऊँगा मैं आपको
हाँ सुहाग हूँ मैं
आज फैशन ने मुझे
सुहागनों की नजर में इतना
छोटा कर दिया है कि
पास होकर भी उनसे काफी दूर हूँ मैं
महत्वपूर्ण होकर भी महत्वहीन हो गया हूँ मैं
हाँ इतना जरुर है कि गाहे-बगाहे
तीज और करवा चौथ पर
सुहागनें मुझे सर पर बिठा कर रखतीं है
नहीं तो अब तो बस एक लाल धब्बा
बन कर रह गया हूँ मैं
फिर भी कहता हूँ कि
“सुहाग” हूँ मैं
विनोद सिन्हा
स्वरचित-१२//१२/२०१७