*सुर्ख होंठ तेरे मधुशाला है*
सुर्ख होंठ तेरे मधुशाला है
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सुर्ख होंठ तेरे मधुशाला हैँ,
हर हाल में पीनी हाला है।
अधर जल रहें है दीपक से,
दिल मे जल रही ज्वाला है।
कुछ कहने को आतुर हम,
पर मुंह पर जड़ा ताला है।
अंग अंग तेरा नशीला सा,
गले में प्रेम की माला है।
आइने में देखूँ परछाई मै,
खुद को तुझ मे ढाला है।
दे दो हमें तुम मनसीरत,
प्रेम पथ में खड़े ग्वाला है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)