सुबह का भूला
सुबह का भूला
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सुबह ही,
का घर से
निकला।
भूल गया,
घर का
रास्ता।
घर था जहां,
नहीं है वहां,
भटक गया,
मैं या घर।।
कभी इधर ,
कभी उधर;
बैठे होंगे,
पापा गये ,
सुबह थे;
अब तक
नहीं आये।
टकटकी लगाये;
अब आये,
हर आहट पर,
दौड़ कर,
किवाड़ खोल कर,
देखा।
नहीं आये ?
अब शाम,
ढल आई,
न घर की,
न बच्चों की,
दिखी कहीं,
परछाई !
दिन बीते,
बरस बीते,
शाम कई आई !
एक दिन
सुबह भूला था,
शाम तक
नहीं पहुंचा ।
घर भटका
कि मैं
नहीं पता ?
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राजेश’ललित’