सुपारी
सुपारी को अपने खुद के नाम से बहुत चिढ़ थी कि उनके जनक ने उनका यह नाम आखिर क्यों रख दिया? वह सोचती दूसरा नाम होता तो लोग उसे हिकारत की नजर से तो न देखते।
सुपारी को सबसे बड़ी शिकायत इस बात को लेकर थी कि मैं दुकानों में चन्द टके में बिकती हूँ और लोग हैं कि मेरे नाम लेकर लाखों-करोड़ों रुपये कमा लेते हैं।
आप हँस क्यों रहे? आप ही बतलाइए ना कि बेचारी सुपारी गलत तो नहीं बोल रही है?
(लघुकथा-संग्रह : मृगतृष्णा (दलहा, भाग-2 से)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।