अंधेरों रात और चांद का दीदार
क्या क्या बताए कितने सितम किए तुमने
बदलने को तो इन आंखों ने मंजर ही बदल डाले
अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
क्या यही है हिन्दी-ग़ज़ल? *रमेशराज
है कश्मकश - इधर भी - उधर भी
जब तुम उसको नहीं पसन्द तो
उम्र तो गुजर जाती है..... मगर साहेब
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
*आगे आनी चाहिऍं, सब भाषाऍं आज (कुंडलिया)*
*खुश रहना है तो जिंदगी के फैसले अपनी परिस्थिति को देखकर खुद
बड़े अगर कोई बात कहें तो उसे
पूनम की चांदनी रात हो,पिया मेरे साथ हो
बुद्धिमान हर बात पर,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"Recovery isn’t perfect. it can be thinking you’re healed fo
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
24/225. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
मन का मिलन है रंगों का मेल
अपने चरणों की धूलि बना लो
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'