“सुधार”
“सुधार”
वास्तविक सुधार अन्तर्मन के स्पर्श से ही सम्भव है। ठीक वैसे ही जैसे हथौड़ा के प्रहार से ताला टूट तो सकता है, लेकिन वह खुलता तभी है, जब चाबी उसे प्रेम से स्पर्श करती है।
“सुधार”
वास्तविक सुधार अन्तर्मन के स्पर्श से ही सम्भव है। ठीक वैसे ही जैसे हथौड़ा के प्रहार से ताला टूट तो सकता है, लेकिन वह खुलता तभी है, जब चाबी उसे प्रेम से स्पर्श करती है।